हमर भारत भुईयाँ के सरी धरती सरग जइसन हावय। इहां रिंगी चिंगी फुलवारी
बरोबर रिती-रिवाज,आनी बानी के जात अउ धरम,बोली-भाखा के फूल फूले हावय।
एखरे संगे संग रंग-रंग के रहन-सहन,खाना-पीना इहां सबो मा सुघराई हावय।
हमर देश के परियावरन घलाव हा देश अउ समाज के हिसाब ले गजब फभथे। इही
परियावरन के हिसाब ले देश अउ समाज हा घलो चलथे। इही परियावरन के संगे संग
देश के अर्थबेवसथा हा घलाव चलथे-फिरथे। भारत मा परियावरन हा इहां के ऋतु
अनुसार सजथे संवरथे। भारत मा एक बच्छर मा छै ऋतु होथे अउ एखरे हिसाब ले
परियावरन हा बनथे-बिगङथे। भारत मा ऋतु ला भारतीय महीना के हिसाब ले छै
भाग मा बांटे गे हावय जउन हा बसन्त,गरमी, बरसा, सरद, हेमन्त अउ सिसिर के
नांव ले जाने जाथे। हिन्दू नवा बच्छर मा चइत ले बइसाख बसंत ऋतु, जेठ ले
असाढ गरमी रितु, सावन ले भादो बरसा, कुंवार ले कातिक सरद रितु, अग्घन ले
पूस हेमंत रितु, मांघ ले फागुन सिसिर रितु के मउसम रथे। ए परकार ए छै
रितु हा एक बच्छर मा दु-दी महीना रहीथे। साल भर के छै रितु अलग-अलग अपन
असर देखाथे। सबो रितु के अपन-अपन समे घातेच महत्तम हावय। जिनगी मा संतुलन
बनाय खातिर सबो मउसम के खच्चित जरुरत होथे। कोनो भी एक झन के कमी मा भारी
गङबङी हमर परियावरन अउ जिनगी मा अमा जाही। एखरे सेती सबो रितु पारी-पारी
दु-दु महीना अपन असर देखाथे।
हमर देश के छै रितु मा तन अउ मन के सुख देवइया बङ मनभावन
मउसम हेमन्त रितु हा होथे। हेमंत रितु हा सरद रितु के बिदा होवत साठ आ
धमकथे। इही हेमन्त के बङई महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी हा अइसन करे हावय:-
*ऋतु हेमंत संग पिएउ पियाला।*
*अगहन पूस सीत सुख-काला।।*
*धनि औ पिउ महँ सीउ सोहागा।*
*दुहुँन्ह अंग एकै मिलि लागा।।*
हिन्दू गरंथ आयुरबेद के हिसाब ले हेमन्त रितु ला
सुवासथ अउ सुवाद के सुग्घर रितु कहे जाथे। हेमन्त रितु हा जङकाला ला संग
मा धर के लाथे। सरद पुन्नी के पाछू हेमंत रितु हा सुरु होथे। ए जङकाला
हा दु भाग मा बटाय रथे। हल्का-फुल्का सहतुत मनमरजी जाङ हा हेमंत रितु
कहाथे अउ बङ भारी कङकङावत जाङ हा सिसिर रितु कहाथे। हेमंत रितु सुवाद अउ
सुवासथ बनाय के मउसम आय। हेमंत रितु मा सरीर के सरी दोसमन हा सान्त होय
ला धर लेथे अउ अगनी हा ऊंच होय लगथे। एखरे सेती ए रितु हा बच्छर भर मा
सबले बढिया सुवासथ देवइया रितु होथे। ए रितु मा भरपूरहा उरजा, सरीर के
रोगपरतिरोधक सक्ती के बिकास होथे। एकरे सेती डाक्टर मन हा छुट्टी मा चल
देथें। ए रितु मा सरसो तेल के मालिस अउ कुनकुन पानी मा नहाय के जरुरत
होथे। ए मउसम मा कसरत करे ले, गुरतुर अउ अम्मट के संग नुनछुर खाये पीये
ले ए रितु मा सरीर ला बङ उरजा के संग अगनी हा बाढथे। सरद के बीते ले ए
रितु मा मउसम हा बङ मनभावन अउ सुहावन हो जाथे। जोरदरहा घाम ले
नान्हे-नान्हें कीरा-मकोरा मन के नास हो जाथे। एखर ले बेमारी अउ
रोग-मांदी के डर सिरा जाथे। सरीर सुग्घर सुवासथ हो जाथे। पेट के पाचन
सक्ती हा बाढ जाथे। ए मउसम मा सुवाद अउ सुवासथ बाढ जाथे। हेमंत रितु मा
किसिस-किसिम के साग-भाजी,फल-फलहरी,कांदा-कूसा के भरमार हो जाथे।
साग-भाजी,भाजी-पाला मन हा बङ सस्ता हो जाथे। एखर कारन हे गाँव-गवंई के
बारी- बखरी के साग-भाजी के आवक बजार मा बाढ जाथे। साग-भाजी मा गोंदली
भाजी,मेथी भाजी,चउलाई भाजी,पालक,लाल,बर्रे,चना भाजी,मुनगा भाजी,सरस़ो
भाजी,मुरईभाजी के बहार आ जाथे। मूंगफली, बिही, खीरा,गाजर, कुसियार,
छीताफर,संतरा, खोखमा,सिंघाङा अउ जिमीकांदा घलाव अब्बङ मिलथे। साग मा
बटकर, गोलेंदा भाँटा, फूलगोभी, बंधागोभी, गाँठगोभी, सेमी,
मुरई,तुमा,मखना,बटकर,बटर अउ बटरी अउ आनी-बानी के साग के बहार आथे। कँस के
खाये अउ कँस के सेहत बनाय के सबले सोनहा समे इही मउसम हा होथे।
सुरुजनरायन के सोज्झे घाम ले तन-मन मा अगनी के बढती आथे। एखरे सेती ए
मउसम मा पाचन सक्ती जोरदरहा हो जाथे। कथरी, कंबल, अलवान, अलाव,भुर्री
हेमन्त रितु के चिन्हारी हरय। एखर बिन हेमन्त रितु अधूरा होथे,सुन्ना
रथे। बुता काम के पूरा आ जाथे। धान मिंजाई हा फदगे रथे ता गहूं चना के
बोवाई घलो चलत रथे। दिनमान हा झटपट सिरा जाथे,बेरा जलदी बुङ जाथे। रतिहा
हा बङ लाम हो जाथे जउन हा लटपट पहाथे। भिमसरहा उठ के खेती-किसानी के बुता
,दउङ, कसरत-बियाम के सुग्घर पाग हा इही मउसम मा धरा जाथे।
ए हेमंत रितु मा नफा के संग थोरिक नकसानी घलाव हावय। ए
मउसम हा जतका सुख देथे ओतका दुख घलो देथे एखरे सेती ए जङकाला मा थोरिक
चेतलगहा रहे ला परथे। खवई-पियई ले जादा अपन सरीर के घलो धियान दे ला
लागथे। जुङ के दु महीना ला सावधानी ले बिताना चाही। अइसन करे ले नसकान ला
नफा मा बदले जा सकथे। जरुरत हे सिरिफ जागरुक रहे के। ए जुङ के दु महीना
मा मधुमेह जेला सुगर या फेर सक्कर के मरीज मन ला बिसेस धियान दे के जरुरत
रथे। सुगर के मरीज मन ला हिरदे अउ दिमाग मा गहरा अघात के खतरा हा जादा
बाढ जाथे। एखर संगे संग ए जङकाला मा लहू-रकत के नस हा सकला जाथे जेखर ले
रक्तचाप (बल्डप्रेसर) हा बाढ जाथे। ए जुङ के मउसम मा सबले जादा
जुङ-सरदी,खाँसी अउ बोखार हा जादा जोर मारथे। जङकाला के जुङ-सरदी मा 100
ले जादा वाइरस के संग मा रंगे होथे। एखर सेती जुङ मा बेमारी ले बांचे बर
जम्मो लइका,जवान अउ सियान मन ला सावधानी अउ जुङ ले बचाव के नंगत जरूरत
होथे। जङकाला मा जाङ ले बांचे बर
कंबल,कथरी-गोदरी,साल-सेटर,कनटोप-मोजा,मफलर-दस्ताना ज इसन जीनिस के घातेच
जरुरत रथे। जुङ हा सरीर मा मुङी,कान अउ गोङ डहर ले खुसरथे। एखरे सेती ए
अंग मन ला जङकाला मा बने तोप-ढांक के रखना चाही। गरम अंगरक्खा,गरमा-गरम
खानपान के संगे संग थोर-बहुत कसरत-बियाम रोजेच करते रहना चाही। घाम मा
बइठ के रउनिया तापे ले सरीर ला विटामिन डी घलाव मिलही। भुर्री बार के जाङ
ला भगाय के बेवसथा पोठ होना चाही। आनी-बानी के साग -भाजी जोरदरहा खाव फेर
चेतलगहा घलो खाव। ए मउसम हा सुवाद के संग सुवासथ के सुग्घर रितु हरय।
तिल,गुङ,मूंगफली अउ रेवङी के सेवन जङकाला मा भरपूर करे ले सरीर ला भीतर
ले गरमी मिलथे। ए हेमन्त रितु मा सुवाद के सुग्घर मजा हे फेर जाङ मा
थोरिक बेमारी के घलाव सजा हे। जिनगी मा अउ ए मउसम मा संतुलन बनाके बरोबर
चेतलगहा बुता के जरुरत हावय। सुवाद के फेर मा सुवासथ हा झन बिगङय एखर चेत
पहिलीच करे ला परही। चेतलग रहव अउ मउसम के जबर मजा लव।
कन्हैया साहू “अमित”
~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क ~ 9753302055